श्लोक - ६४९
निर्दुष्टं सार्थकं वाक्यं ये न जानन्ति भाषितुम् ।
वाक्यजालमनुस्यूतं वक्तुमेव हि ते क्षमा: ॥
Tamil Transliteration
Palasollak Kaamuruvar Mandramaa Satra
Silasollal Thetraa Thavar.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 051 to 060 |
chapter | वाग्मित्वम् |