श्लोक - ३१५
परदु:खं स्वदु:खेन समं मत्वापि तो जन:।
परान्न त्रायते तस्य तत्वज्ञानेन किं फलम्?॥
Tamil Transliteration
Arivinaan Aakuva Thunto Piridhinnoi
Thannoipol Potraak Katai.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 021 to 030 |
chapter | अपकारत्याग: |