श्लोक - २८०
लोकदूष्ये दुराचारस्त्यज्यतेचेत् तपस्विभि:।
कुतो वा मुण्डनं तेषां जटाभारेण वा किमु॥
Tamil Transliteration
Mazhiththalum Neettalum Ventaa Ulakam
Pazhiththadhu Ozhiththu Vitin.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 021 to 030 |
chapter | दुराचार: |