श्लोक - २०४
परदु:खप्रदं कर्म प्रमादेनापि न स्मरेत्।
अन्यथा स्मरतोऽस्यैव धर्मो नाशं विचिन्तयेत्॥
Tamil Transliteration
Marandhum Piranketu Soozharka Soozhin
Aranjoozham Soozhndhavan Ketu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | दुष्कर्मभीति: |