श्लोक - १८५
वाचा धर्मे वदेन्नाम मनस्तत्र न विद्यते ।
इत्येव स हि मन्तव्य: परोक्षे यस्तु निन्दति ॥
Tamil Transliteration
Aranjollum Nenjaththaan Anmai Puranjollum
Punmaiyaar Kaanap Patum.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | परोक्षनिन्दावर्जनम् |