श्लोक - १७०
असूयावान्नरो लोके न प्राप्नोति समुन्नतिम् ।
असूयया विरहितं न जहात्युन्नतिर्नरम् ॥
Tamil Transliteration
Azhukkatru Akandraarum Illai Aqdhuillaar
Perukkaththil Theerndhaarum Il.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | अनसूयता |