श्लोक - १६५
असूयया सम: शत्रुर्वर्तते न महीतले ।
रिपौ कदाचिच्छान्तेऽपि नूनं सा कुरुते व्यथाम् ॥
Tamil Transliteration
Azhukkaaru Utaiyaarkku Adhusaalum Onnaar
Vazhukka?yum Keteen Padhu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | अनसूयता |