श्लोक - १२४६
त्वत्प्रियस्त्वां वियुज्याथ मिलेद्यदि तदा पुन: ।
रतिं न कुरुषे धैर्यात् पश्चात्कुप्यसि हे मन: ! ॥
Tamil Transliteration
Kalandhunarththum Kaadhalark Kantaar Pulandhunaraai
Poikkaaivu Kaaidhien Nenju.
Section | भाग–३: काम-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 121 to 133 |
chapter | मनस्येव कथनम् |