श्लोक - १२१६
भुवि जाग्रदवस्थेयं सर्वदा न भवेद्यदि ।
तदा प्रिय: स्वप्नदृष्टो मां वियुज्य न यास्पति
Tamil Transliteration
Nanavena Ondrillai Aayin Kanavinaal
Kaadhalar Neengalar Man.
Section | भाग–३: काम-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 121 to 133 |
chapter | दृष्टस्वप्नकथनम् |