श्लोक - १२१२
नेत्रे निद्रावशं प्राप्ते स्वप्ने प्राप्तं प्रियं प्रति ।
कथं 'कृच्छेण जीवामी' त्येतद् ब्रूयां विहेषत: ॥
Tamil Transliteration
Kayalunkan Yaanirappath Thunjir Kalandhaarkku
Uyalunmai Saatruven Man.
Section | भाग–३: काम-काण्ड |
---|---|
Chapter Group | अध्याय 121 to 133 |
chapter | दृष्टस्वप्नकथनम् |