श्लोक - ११३
पक्षपातार्जितं वित्तं सुखं नैव प्रयच्छति ।
कदाचित् सुखदं भायादथापि परिवर्जयेत् ॥
Tamil Transliteration
Nandre Tharinum Natuvikandhaam Aakkaththai
Andre Yozhiya Vital.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | ताटस्थ्यम् |