श्लोक - १०४७
अधर्महेतुदारिद्र्यसमाविष्टं नरं भुवि ।
जननी तमुदासीनं मत्वा दूरीकरोत्यहो ॥
Tamil Transliteration
Aranjaaraa Nalkuravu Eendradhaa Yaanum
Piranpola Nokkap Patum.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 101 to 108 |
chapter | दारिद्र्यम् |