श्लोक - १००१
अभुक्त्वा स्वार्जितं वित्तं गृहपूर्णं सुपुष्कलम् ।
मृतिं प्राप्तवतस्तस्य किं वित्तेन प्रयोजनम् ॥
Tamil Transliteration
Vaiththaanvaai Saandra Perumporul Aqdhunnaan
Seththaan Seyakkitandhadhu Il.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 101 to 108 |
chapter | निरर्थकं वित्तम् |