श्लोक - ९५
विनयो मधुरालाप: द्वयमाभरणं नृणाम् ।
ताभ्यां द्वाभ्यां विहीनस्य किमन्यैर्भूषणै: फलम् ॥
Tamil Transliteration
Panivutaiyan Insolan Aadhal Oruvarku
Aniyalla Matrup Pira.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | मधुरालाप: |