श्लोक - ८८
यस्यातिथीनां सत्कारयज्ञे बुद्धिर्न जायते ।
लब्धं वस्तु परिभ्रष्टं भवेदिति स चिन्तयेत् ॥
Tamil Transliteration
Parindhompip Patratrem Enpar Virundhompi
Velvi Thalaippataa Thaar.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | अतिथिसत्कार: |