श्लोक - ८३०
शत्रुभि: सह मैत्र्यां च प्रसक्तायां मुखे परम् ।
प्रसर्श्य मैत्रीं हार्दां तां मैत्रीं छिन्धि निरन्तरम् ॥
Tamil Transliteration
Pakainatpaam Kaalam Varungaal Mukanattu
Akanatpu Oreei Vital.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
---|---|
Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | आन्तरस्नेहशून्यता |