श्लोक - ७९६
स्नेहतत्त्वं परिज्ञातुं खेद: स्यान्मानदण्डवत् ।
तस्मात् दु:खस्य सम्प्राप्तिरपि क्षेमाय कल्पते ॥
Tamil Transliteration
Kettinum Untor Urudhi Kilaignarai
Neetti Alappadhor Kol.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | स्नेह्अपरीक्षा |