श्लोक - ७५
प्रेमार्द्रहृदयो यस्तु वर्तसे स्वीयबन्धुषु ।
सोऽत्र कीर्ति सुखं चैत्य स्वर्गलोके सुखं वसेत् ॥
Tamil Transliteration
Anputru Amarndha Vazhakkenpa Vaiyakaththu
Inputraar Eydhum Sirappu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | प्रीति: |