श्लोक - ७०१
मुखनेत्रगतैर्भवै: अनुक्तं चान्तराश्यम् ।
यो वेत्ति सचिवो लोकभूषणं स भवेद् ध्रुवम् ॥
Tamil Transliteration
701 Kooraamai Nokkake Kuripparivaan Egngnaandrum
Maaraaneer Vaiyak Kani.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 051 to 060 |
chapter | इङ्गितपरिज्ञानम् |