श्लोक - ५०३
पूर्वोक्तदोषशून्येषु पण्डिताग्रेसरेष्वपि ।
विचार्यमाणेत्वज्ञानं नूनं द्रष्टुं हि शक्यते ॥
Tamil Transliteration
Ariyakatru Aasatraar Kannum Theriyungaal
Inmai Aridhe Veliru.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 039 to 050 |
chapter | विभृश्यविश्वसनम् |