श्लोक - ४२५
व्यस्ने च सुखे स्निग्धान् समभावेन पश्यति ।
महद्भि: स्नेहमाप्नोति ज्ञानवान् ज्ञानसाधनात् ॥
Tamil Transliteration
Ulakam Thazheeiya Thotpam Malardhalum
Koompalum Illa Tharivu.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 039 to 050 |
chapter | unknown 43 |