श्लोक - ३०५
य आत्मरक्षणे व्यग्र: स कोपं परिवर्जयेत्।
अन्यथा शत्रु भूतोऽसौ नाशयेत् कोपशालिनम्॥
Tamil Transliteration
Thannaiththaan Kaakkin Sinangaakka Kaavaakkaal
Thannaiye Kollunj Chinam.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 021 to 030 |
chapter | क्रोधविजय: |