श्लोक - २४८
सत्कर्मणा दरिद्रोऽपि कदाचिद्धनिक: सुखी।
निर्दयस्य कुत: सौख्यं न कदापि स वर्धते॥
Tamil Transliteration
Porulatraar Pooppar Orukaal Arulatraar
Atraarmar Raadhal Aridhu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 021 to 030 |
chapter | दया |