श्लोक - २३२
याचकेभ्यो दारिद्र्येभ्य: स्वल्पं वापि प्रयच्छत:।
कीर्तिरेव सदा सद्भिर्गीता भवति शाश्वती॥
Tamil Transliteration
Uraippaar Uraippavai Ellaam Irappaarkkondru
Eevaarmel Nirkum Pukazh.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | कीर्ति: |