श्लोक - १२१८
मत्स्वप्ने कामुक: प्राप्य स्कन्धमारुह्य वर्तते ।
निद्रान्ते पूर्ववत्सोऽयं मम मानसमाविशेत् ॥
Tamil Transliteration
Thunjungaal Tholmelar Aaki Vizhikkungaal
Nenjaththar Aavar Viraindhu.
Section | भाग–३: काम-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 121 to 133 |
chapter | दृष्टस्वप्नकथनम् |