श्लोक - १२०
अन्येषामपि वस्तूनि स्वकीयानीव पश्यता ।
क्रियते यत्तु वाणिज्यं तद्वाणिज्यमितीर्यते ॥
Tamil Transliteration
Vaanikam Seyvaarkku Vaanikam Penip
Piravum Thamapol Seyin.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | ताटस्थ्यम् |