श्लोक - ५२
गुण-गण गृहणी में न हो, गृह्य-कर्म के अर्थ ।
सुसंपन्न तो क्यों न हो, गृह-जीवन है व्यर्थ ॥
Tamil Transliteration
Manaimaatchi Illaalkan Illaayin Vaazhkkai
Enaimaatchith Thaayinum Il.
Section | धर्म- कांड |
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Chapter Group | अध्याय 011 to 020 |
chapter | सहधर्मिणो |