चिर- मैत्री

Verses

श्लोक #८०१
जो कुछ भी अधिकार से, करते हैं जन इष्ट ।
तिरस्कार बिन मानना, मैत्री कहो धनिष्ठ ॥

Tamil Transliteration
Pazhaimai Enappatuvadhu Yaadhenin Yaadhum
Kizhamaiyaik Keezhndhitaa Natpu.

Explanations
श्लोक #८०२
हक्र से करना कार्य है, मैत्री का ही अंग ।
फ़र्ज़ समझ सज्जन उसे, मानें सहित उमंग ॥

Tamil Transliteration
Natpir Kuruppuk Kezhudhakaimai Matradharku
Uppaadhal Saandror Katan.

Explanations
श्लोक #८०३
निज कृत सम जो मित्र का, साधिकार कृत काम ।
यदि स्वीकृत होता नहीं, चिर-मैत्री क्या काम ॥

Tamil Transliteration
Pazhakiya Natpevan Seyyung Kezhudhakaimai
Seydhaangu Amaiyaak Katai.

Explanations
श्लोक #८०४
पूछे बिन हक मान कर, मित्र करे यदि कार्य ।
वांछनीय गुण के लिये, मानें वह स्वीकार्य ॥

Tamil Transliteration
Vizhaidhakaiyaan Venti Iruppar Kezhudhakaiyaar
Kelaadhu Nattaar Seyin.

Explanations
श्लोक #८०५
दुःखजनक यदि कार्य हैं, करते मित्र सुजान ।
अति हक़ या अज्ञान से, यों करते हैं जान ॥

Tamil Transliteration
Pedhaimai Ondro Perungizhamai Endrunarka
Nodhakka Nattaar Seyin.

Explanations
श्लोक #८०६
चिरपरिचित घन मित्र से, यद्यपि हुआ अनिष्ट ।
मर्यादी छोडें नहीं, वह मित्रता धनिष्ठ ॥

Tamil Transliteration
Ellaikkan Nindraar Thuravaar Tholaivitaththum
Thollaikkan Nindraar Thotarpu.

Explanations
श्लोक #८०७
स्नेही स्नेह-परंपरा, जो करते निर्वाह ।
मित्र करे यदि हानि भी, तज़ें न उसकी चाह ॥

Tamil Transliteration
Azhivandha Seyyinum Anparaar Anpin
Vazhivandha Kenmai Yavar.

Explanations
श्लोक #८०८
मित्र-दोष को ना सुनें, ऐसे मित्र धनिष्ठ ।
मानें उस दिन को सफल, दोष करें जब इष्ट ॥

Tamil Transliteration
Kelizhukkam Kelaak Kezhudhakaimai Vallaarkku
Naalizhukkam Nattaar Seyin.

Explanations
श्लोक #८०९
अविच्छिन्न चिर-मित्रता, जो रखते हैं यार ।
उनका स्नेह तजें न जो, उन्हें करे जग प्यार ॥

Tamil Transliteration
Ketaaa Vazhivandha Kenmaiyaar Kenmai
Vitaaar Vizhaiyum Ulaku.

Explanations
श्लोक #८१०
मैत्री का गुण पालते, चिरपरिचित का स्नेह ।
जो न तजें उस सुजन से, करें शत्रु भी स्नेह ॥

Tamil Transliteration
Vizhaiyaar Vizhaiyap Patupa Pazhaiyaarkan
Panpin Thalaippiriyaa Thaar.

Explanations
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