श्लोक - ९
गुणाष्टकयुतेशस्य पदे येन न वन्दिते ।
दृष्टया विरहितं चक्षुरिव तस्य शिरो वृथा ॥
Tamil Transliteration
Kolil Poriyin Kunamilave Enkunaththaan
Thaalai Vanangaath Thalai.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 001 to 010 |
chapter | ईश्वरवन्दनम् |