श्लोक - ९४२
भुक्तं जीर्णमभूद्वेति विमर्शनन्तरं पुन: ।
भुञ्जानस्य शरीरस्य वृथा भवति भेषजम् ॥
Tamil Transliteration
Marundhena Ventaavaam Yaakkaikku Arundhiyadhu
Atradhu Potri Unin.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | औषधम् |