श्लोक - ८४
शुद्धातिथिं वेश्म गतं सेवमानस्य सादरम् ।
नरस्य गेहे वसति प्रसन्ना पद्मसम्भवा ॥
Tamil Transliteration
Akanamarndhu Seyyaal Uraiyum Mukanamarndhu
Nalvirundhu Ompuvaan Il.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | अतिथिसत्कार: |