श्लोक - ८३
स्वगृहप्राप्तमतिथिं भक्त्या सत्कुर्वत: सदा ।
दारिद्र्यम् न भवेत् किन्तु धनं चाप्यभिवर्धते ॥
Tamil Transliteration
Varuvirundhu Vaikalum Ompuvaan Vaazhkkai
Paruvandhu Paazhpatudhal Indru.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | अतिथिसत्कार: |