श्लोक - ८२४
बहिर्हास्यमुखो भूत्वा चित्ते द्रोहं चिकीर्षत: ।
वञ्चकस्य तु सौहर्दं दूरे कुरु भयान्वित: ॥
Tamil Transliteration
Mukaththin Iniya Nakaaa Akaththinnaa
Vanjarai Anjap Patum.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | आन्तरस्नेहशून्यता |