श्लोक - ८२१
हार्दस्नेहविहीनस्य बाह्यस्नेहं वितन्वत: ।
मैत्री भग्ना भवेत् स्वर्णमय:खण्डगतं यथा ॥
Tamil Transliteration
Seeritam Kaanin Eridharkup Pattatai
Neraa Nirandhavar Natpu.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | आन्तरस्नेहशून्यता |