श्लोक - ५
माहात्म्यमप्रमेयस्य ज्ञात्वा तं भजतां नृणाम् ।
अज्ञानमूलकं कर्म द्विविधं चापि नश्यति ॥
Tamil Transliteration
Irulser Iruvinaiyum Seraa Iraivan
Porulser Pukazhpurindhaar Maattu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 001 to 010 |
chapter | ईश्वरवन्दनम् |