श्लोक - ५८०
सुहृद्दत्तं विषं चापि पीत्वा प्रत्ययकारणात् ।
मैत्रीं च तेन कुर्वन्ति दाक्षिण्यगुणकांक्षिण: ॥
Tamil Transliteration
Peyakkantum Nanjun Tamaivar Nayaththakka
Naakarikam Ventu Pavar.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 039 to 050 |
chapter | दाक्षिण्यम् |