श्लोक - ५५८
धर्ममार्गं समुल्लंघ्य रक्षत: पृथिवीपते: ।
देशे सतां तु दारिद्रयात् सम्पत्क्लेशाय कल्पते ॥
Tamil Transliteration
Inmaiyin Innaadhu Utaimai Muraiseyyaa
Mannavan Korkeezhp Patin.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 039 to 050 |
chapter | अनीत्यापालनम् |