श्लोक - ४७
धर्मेण वर्त्मना यस्तु गार्हस्थ्य मुपसेवते ।
मार्गन्तरोपजीविभ्य: स प्रशस्तो निगद्यते ॥
Tamil Transliteration
Iyalpinaan Ilvaazhkkai Vaazhpavan Enpaan
Muyalvaarul Ellaam Thalai.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | गार्हस्थ्यम् |