श्लोक - ४५
गार्हस्थ्यजीवनं यत् स्यात् स्नेहधर्मसमन्वितम् ।
तदेव सार्थकं लोके तद्धि गार्हस्थ्यमुच्यते ॥
Tamil Transliteration
Anpum Aranum Utaiththaayin Ilvaazhkkai
Panpum Payanum Adhu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | गार्हस्थ्यम् |