श्लोक - १५३
दरिद्रेषु दरिद्र: स्यात् भ्रष्टस्त्वतिथिपूजनात् ।
मूढनिन्दा सहिष्णुस्तु समर्थेषूत्तमो भवेत् ॥
Tamil Transliteration
Inmaiyul Inmai Virundhoraal Vanmaiyul
Vanmai Matavaarp Porai.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | क्षमा |