श्लोक - १२७
निरोद्धव्येषु बहुषु जिह्वां वा रोध्दुमर्हति ।
अन्यथा शब्ददोषेण जायते दु:खभाजनम् ॥
Tamil Transliteration
Yaakaavaa Raayinum Naakaakka Kaavaakkaal
Sokaappar Sollizhukkup Pattu.
Section | भाग–१: धर्मकाण्ड |
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Chapter Group | अधिकार 011 to 020 |
chapter | निग्रहशीलता |