श्लोक - ८९७
महात्मा सुतप:शील: कुप्वेद्यदि महीपतिम् ।
तस्य भॄपस्य वित्तेन साम्राज्येनापि किं फलम् ॥
Tamil Transliteration
Vakaimaanta Vaazhkkaiyum Vaanporulum Ennaam
Thakaimaanta Thakkaar Serin.
Section | भाग–२: अर्थ-काण्ड |
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Chapter Group | अध्याय 91 to 100 |
chapter | महात्मनिन्दानिराकरणम् |